कौंग एंजेला रंगद की चिठ्ठी

प्रिय साथी,

मैं एक ख़ास वजह से आपको यह चिट्ठी लिख रही हूँ। मैं 2023 में होने जा रहे मेघालय विधानसभा चुनाव में साउथ शिलौंग निर्वाचन क्षेत्र से काम मेघालय (KAM Meghalaya) की ओर से बतौर आज़ाद (इंडिपेंडेंट) उम्मीदवार चुनाव लड़ूँगी। काम मेघालय एक राजनीतिक मंच है जो राज्य में न्याय व बराबरी और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ चले के लिए चलाए गए विभिन्न जन-संघर्षों से उभरा है। हम कई सालों से मेहनतकशों के हक़ों,  भूमि अधिकार, पर्यावरण और महिलाओं के अधिकारों जैसे मुद्दों को लेकर सक्रिय रहे हैं।  मेघालय में जिस तरह से भ्रष्टाचार, अपराधों और सांप्रदायिकता ने शासन पर क़ब्ज़ा कर लिया है, उसे चुनौती देने की ज़रूरत है। 

यूँ  तो मैं अपने जीवन के बारे में बात करने में झिझकती  हूँ  लेकिन मैं क्योंकि चुनाव आपका साथ चाहती हूँ तो आपको मेरे बारे में यह मालूम होना चाहिए कि मैं कौन हूँ, कहाँ से हूँ, मेरी बैकग्राउंड क्या है और मुझे आपके समर्थन की उम्मीद क्यों हैं?

मैं कहाँ की हूँ?

मैं लाबान हरिसभा में पली-बढ़ी खासी महिला हूँ। शिलौंग के इस सबसे पुराने इलाके से मेरे परिवार का छह पीढ़ियों से गहरा रिश्ता चला आ रहा है। मेरा बचपन लाबान की गलियों में, यहाँ के चढ़ाई और ढलान वाले रास्तों पर दौड़ते-भागते बीता; कभी पतंग का पीछा करते हुए, कभी नानी की उंगली थामे लुम्पारिंग तक टहलते-घूमते। यौडक/बत्ती बाज़ार में खरीदारी के लिए दौड़ पड़ना, मिठाई के लिए लास्ट स्टॉप जाना या फिर झालूपाड़ा, मोमो के लिए चले जाना, मैं कुछ भी नहीं भूली हूँ। मैंने दक्षिण शिलौंग के सतरंगी,  बहु-जातीय और बहु-धार्मिक इतिहास को जिया है – चाहे वह क्रिसमस का उत्साह हो, दुर्गा पूजा से जुड़ी प्रतियोगिताएं हों या इफ़्तार के लिए पड़ोसियों के घर जाना हो। 

मेरी शिक्षा के बारे में

मेरी पढ़ाई शिलौंग के पाइन माउंट स्कूल में हुई। मैंने बीए और एमए में नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (नेहु), शिलौंग से एंथ्रोपोलॉजी की पढ़ाई की। बीए दोनों ही कक्षाओं में टॉपर होने के नाते मुझे गोल्ड मैडलिस्ट होने का गौरव मिला। मैंने अपने छात्र जीवन के दौरान ही पर्यावरण और महिला-अधिकारों को लेकर संगठनों के साथ काम करना शुरू कर दिया था। इस दौरान आम लोगों की मुश्किलों और उनकी बेबसी ने मुझे बुरी तरह बेचैन कर दिया। मैंने पाया कि मैं एक ऐसे राज्य और समाज का हिस्सा हूँ जिसमें ग़ैर-बराबरी तेज़ी से बढ़ रही है और मुट्ठी भर ताक़तवर लोगों ने सत्ता और संसाधनों के बेजा इस्तेमाल व भ्रष्टाचार के ज़रिए मेघालय को एक ग़रीब, अविकसित हाल में धकेल दिया है। मुझे महसूस हुआ कि हालात को गहराई से समझने और इनसे पैदा बेचैनी के इज़हार तक के लिए मुझे वाजिब भाषा और ज़्यादा अध्ययन की ज़रूरत है। इसी दौरान मुझे लंदन यूनिवर्सिटी के `स्कूल ऑफ ओरियेन्टल एंड अफ्रीकन स्टडीज` में `एंथ्रोपोलॉजी ऑफ डिवेलपमेंट` की पढ़ाई के लिए प्रतिष्ठित INLAKS Scholarship हासिल हो गई। 2001 में जब मैं लंदन से शिलॉन्ग लौटी तो मेरे सामने किसी भी युवा की तरह यही सवाल था कि करियर के तौर पर क्या किया जाए।

मैं लाबान की स्वतंत्र विचारों वाली ख़ुद-मुख्तार, मजबूत महिलाओं के बड़े खासी परिवार से ताल्लुक़ रखती हूँ। मेरी नानी डॉ. म्यूरियल डन खासी सबसे शुरुआती खासी डॉक्टरों में से एक थीं और मेरे नाना डॉक्टर मोर्निंग स्टार डिंगडोह, लाबान प्रेज़्बेटीरीयन चर्च के चर्च एल्डर। मेरी माँ डॉ लिंडा रंगद भी डॉक्टर थीं। मेरे पिता पॉल सावियान सरकारी नौकरी में थे। मेरी मौसियाँ और मामा लोग टीचर, डॉक्टर, बैंकर, टेक्नोक्रेट हैं। सबसे छोटे मामा तो लाबान विधानसभा क्षेत्र से एम एल ए MLA थे। मैंने `पेशेवर करियर` अपनाने के बजाय समाज की बेहतरी के लिए काम करने का फ़ैसला लिया तो मेरा परिवार काफ़ी चिंतित हो उठा था। 

अपनी पढ़ाई के दौरान ही अपनी कम्युनिटी, सोसायटी और सरकार के तौर-तरीक़ों को मैं जितना भी देखती थी, उतनी ही शिद्दत से महसूस करती कि मेघालय की बड़ी आबादियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है जिस वजह से उनकी रोज़-ब-रोज़ की ज़िंदगी की जद्दोजहद बढ़ती जाती है। घरेलू हिंसा का सामना करती महिला हो,  एक अदद राशन कार्ड के लिए दर-दर भटक रहा परिवार हो, पक्षपात और भ्रष्टाचार के कारण नौकरी से वंचित होता कोई युवा हो  या वाजिब मजदूरी हासिल नहीं कर पा रहे मजदूर हों, किसी के पास कोई रास्ता नहीं है। मैं चीज़ों को बदलने के लिए कुछ करना चाहती थी। 

सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मेरे शुरुआती दिन

सबसे पहले, मैं उन संस्थाओं के साथ जुड़ी, मेरे ख़्याल से जिनके ज़रिए मेरी शिक्षा का फ़ायदा जनता को पहुँच सकता था। मैंने सरकारी और गैर सरकारी (एनजीओ) सेक्टर, दोनों के साथ महिला कल्याण और ग्रामीण विकास पर केंद्रित प्रोजेक्टों  में काम किया। हालाँकि, कुछ ही दिनों में मुझे यह अहसास हो गया कि ये संस्थाएँ जनता को केवल योजनाओं के लाभार्थी के रूप में ही देखती हैं। इसलिए, होता यह है कि पैसा खर्च किया जाता रहता है पर असमानता, अन्याय और शोषण जस का तस जारी रहता है और सिस्टम पर ताक़तवर और भ्रष्ट लोगों का कब्ज़ा बरक़रार। मुझे लगा कि अगर मैं समाज में बदलाव चाहती हूँ तो मुझे कुछ अलग करना होगा। कुछ ऐसा कि आम आदमी अपने अधिकारों के लिए खड़ा होने और अपना हक़ मारने वालों को चैलेंज कर कर सकने की ताक़त हासिल कर सके। इंक़लाबी आंदोलनों की ज़रूरत थी और यह किसी एक अकेले के लिए मुमकिन नहीं था। सबसे पहला काम लोगों को संगठित करना था। 

महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष

मैंने 25 साल पहले मेघालय में महिला आंदोलन के साथ मिल कर घरेलू हिंसा और यौन हिंसा की पीड़ितों के लिए इंसाफ़ और उनके वेलफेयर के लिए मुहिम शुरू की। ये मामले अक़्सर पारिवारिक और सामाजिक सम्मान के नाम पर पर दबा दिए जाते हैं। हमने आए दिन आने वाले ऐसे मसलों में सीधे दख़ल देना शुरू किया। हमने उत्पीड़ितों से बात कर, उनकी सुरक्षा व गरिमा सुनिश्चित करने में मदद की। हमने ऐसे मामलों को रफ़ा-दफ़ा कर देने के ढर्रे को बदला और सुनिश्चित किया कि उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हो।हमने राज्य भर में लोगों को महिला अधिकार के मुद्दों पर जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए। हमारे सामूहिक प्रयासों से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के बारे में लोगों के विचार बदले भी हैं।

2005 में मैं और हमारे साथी मेघालय स्टेट वीमेन्स कमीशन कानून के एक-एक क्लॉज को लेकर लड़ रहे थे। निरंतर संघर्ष का परिणाम रहा कि मेघालय को स्वतंत्र राज्य महिला आयोग मिला। 

हम लोगों ने दरबार के परम्परागत ढाँचों में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी की मांग 2000 के शुरुआती दिनों में ही कर दी थी। परंपरा के नाम पर ताक़तवर जो महिलाओं के मसलों पर बहुत सी बार उत्पीड़कों के मददगार साबित होते थे, इस माँग से गुस्सा हो उठे। ख़ुशी की बात है कि खासी महिलओं और पुरुषों के बीच यह समझदारी विकसित हुई है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए न्याय तभी संभव है जब फ़ैसला लेने वाली इकाइयों में महिलाओं की वास्तविक भागीदारी हो।  आज कोर्ट भी यह कह चुका है कि महिलाओं की भागीदारी रोकी नहीं जा सकती। 

महिलाओं और बच्चों के यौन शोषण और रेप के मामलों में हमारा टकराव स्थानीय ताक़तवर लोगों से लेकर बड़ी राजनीतिक हस्तियों तक से हुआ। हमारे संघर्षों की बदौलत एमएलए जैसी हस्तियों तक को जेल जाना पड़ा। यौन उत्पीड़न के मामले में मेघालय के राज्यपाल के विरोध में भी हम एकजुटता के साथ डटे रहे।

महिला आंदोलन ने मुझे यही सिखाया है कि न्याय व समता के संघर्ष को कोई नहीं रोक सकता और एकजुटता में जीत भी निश्चित है। 

शादी, साथी और बच्चे

संघर्ष के इन्हीं दिनों में मेरी मुलाक़ात तरुण भारतीय से हुई। एक फ़िल्मकार, शिक्षक और लेखक;  नागरिक अधिकारों को लेकर तरुण सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मेरे संघर्ष के साथी बने। मेरे जीवन साथी भी। हमारी शादी को 19 साल हो चुके हैं और हमारे तीन स्कूल जाने वाले बच्चे हैं – एक बेटी और जुड़वां बेटे। हमारे बच्चे बहुत छोटे थे तो तरुण ने मुझे वकालत की डिग्री हासिल करने के लिए प्रेरित किया। कानूनी शिक्षा ने जनता के सवालों को लेकर मेरी समझ और सक्रियता को और भी मज़बूत कर किया। 

सूचना का अधिकार/आरटीआइ और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन

2003 में हमने `मेघालय सूचना का अधिकार आंदोलन` का गठन किया।  सरकार, नेताओं और अफ़सरों से जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने पर ज़ोर देने वाले इस आंदोलन के पक्ष में हमने अभियान चलाया। नागरिकों को पहली बार लगा कि वे अपने पैसे का हिसाब माँग सकते हैं और अपने अधिकारों व स्कीमों के बारे में पूछा सकते हैं। जब `राष्ट्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम` का मसौदा तैयार किया जा रहा था,  तो मुझे प्रतिनिधि के रूप में संसद ने पार्लियामेंट्री स्टेंडिंग कमेटी के सामने राय रखने के लिए दिल्ली आमंत्रित किया गया। हमने जोर देकर कहा कि यह कानून सभी राज्यों में लागू होना चाहिए और मानवाधिकारों के हनन व भ्रष्टाचार को लेकर पुलिस और सशस्त्र बलों से भी सवाल पूछे जाने चाहिए। ये सभी सुझाव अंततः कानून में शामिल कर लिए गए।

2005 में आरटीआई कानून बन गया, तो हमने यह बीड़ा उठाया कि आम नागरिक और सरकारी कर्मचारी आरटीआई कानून का ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठा सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए हमने सैकड़ों प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। हम लोग विभिन्न मुद्दों पर आरटीआई लगाने में हजारों लोगों की मदद कर चुके हैं। जनहित में आरटीआई के उपयोग के लिहाज़ से मेघालय देश के सबसे क़ामयाब राज्यों में एक रहा। बार-बार जीतते रहे एमएलए आरटीआई के ज़रिए सार्वजनिक हुए भ्रष्टाचार के मामलों की वजहों से चुनाव तक हार गए हैं।

RTI in Meghalaya is a people’s success story. MLAs have lost elections, because citizens using the RTI have exposed corruption and abuse of power in the implementation of MLA schemes. People secured jobs because they unearthed the nepotism prevalent in exams and interviews, many have got entitlements such as housing and ration cards.

लोगों को आवास, भोजन, न्यूनतम मजदूरी और राशन कार्ड जैसे मूलभूत अधिकार हासिल हो सके और उन्हें पारदर्शी ढंग से रोजगार पाने में मदद मिल सकी। आरटीआई के माध्यम से ही कई बड़े घोटालों का पर्दाफाश तो हुआ, लेकिन भ्रष्ट लोगों पर मुकदमा चलाने और उन्हें सज़ा दिलाने के लिए के लिए कोई उपयुक्त कानून नहीं था। हमने मेघालय में स्वतंत्र लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए एक लोकप्रिय अभियान शुरू किया जिसकी बदौलत मेघालय लोकायुक्त अधिनियम 2014 अस्तित्व में आ सका। हम मेघालय के सामाजिक लेखा परीक्षा कानून के निर्माण का भी हिस्सा रहे।

राशन कार्ड, भोजन का अधिकार, न्यूनतम मजदूरी, कामगारों के अधिकार

सशक्त और संगठित नागरिक दख़ल के बगैर कानून सिर्फ काग़ज़ के पुलिंदे रह जाया करते हैं। लोगों को अपने दैनिक जीवन में बदलाव  देखने को न मिले तो किसी सामाजिक आंदोलन को सफल नहीं कहा जा सकता है। इस उद्देश्य से थमा ऊ रंगली जुकी (तुर/TUR) का गठन किया गया। मैं इस लोकप्रिय संगठन की संस्थापक सदस्य हूँ। विकास को अधिकार के रूप में हासिल करने का सवाल हो या कामगारों के हक़ के सवाल हों,  हमने सभी क्षेत्रों में श्रमिकों को संगठित कर यूनियन खड़ी कीं ताकि वे अपने अधिकारों के लिए प्रभावी ढंग से दावेदारी कर सकें। यह याद रखना चाहिए कि कुछ सालों पहले तक देश में मेघालय में न्यूनतम मजदूरी सबसे कम थी। विभिन्न श्रमिक यूनियनों, घरेलू कामगार आंदोलनों और मनरेगा वर्कर्स आदि के सामूहिक अभियान से ही सरकार को झुकना पड़ा। नतीज़तन, मेघालय आज न्यूनतम मजदूरी के लिहाज़ से सबसे बेहतर राज्यों में से एक है। कामगारों को उचित मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और काम करने की बेहतर स्थितियाँ प्रदान करा पाना TUR की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ रही हैं। 

राज्य में कोविड-19 महामारी के दौरान हम बुरी तरह प्रभावित हुए कमज़ोर लोगों के साथ खड़े थे। राजनीतिक रूप से असरदार लोगों ने लॉक डाउन के दौरान रोज़ी-रोटी का भयानक संकट झेल रहे लोगों की तरफ़ से आँखें फेर ली थीं तो हमने ठोस तथ्यों के साथ आवाज़ बुलंद की और राज्य भर के हजारों और हजारों लोगों को आर्थिक मदद और भोजन दिलाने के लिए संघर्ष किया। 

मेघालय के हॉकर्स और स्ट्रीट वेंडर्स को इंसाफ़ दिलाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में जीत हमारे लिए एक और मील का पत्थर साबित हुई। इन लोगों को सड़कों के किनारों और गलियों से खदेड़ ही दिया गया होता अगर हम लोग संगठित प्रतिरोध न करते। हमारे छह साल के संघर्ष के कारण मेघालय सरकार को हाई कोर्ट के सामने यह मानने के लिए मजबूर होना पड़ा कि सड़क पर समान बेचने वाले हॉकर्स और स्ट्रीट वेंडर्स को सुरक्षा देने वाला केंद्रीय कानून ही लागू होगा।

हमारे संघर्षों की लंबी फेहरिस्त है। जीत का परचम फ़हराने की कहानियाँ भी बहुतेरी हैं। आंगवनाड़ी और मिड-डे मील कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों को समुचित भोजन सुनिश्चित करना हो, इन योजनाओं चट कर रहे भ्रष्ट लोगों को सज़ा दिलाना हो, शिक्षा में सुधार कराना हो, वाइट इंक घोटाले में न्याय की लड़ाई हो या बेहतर और सुलभ स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना हो, हमारी उपलब्धियाँ शानदार हैं। विभिन्न जव-संघर्षों में हमारी जीत की वजह साफ़ है – हम कानून के राज़ में यक़ीन रखते हैं और जब भी राज्यसत्ता नागरिकों के कानूनी अधिकारों का हनन करती है, हम प्रतिरोध करते हैं। हमारे संघर्षों की बदौलत लोगों की ज़िंदगी में और समाज में बेहतर बदलाव आए हैं। 

साम्प्रदायिकता का विरोध और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा

आज जब देश हो या राज्य, लोगों को मज़हब या फिर उनके समुदाय के आधार पर बाँटने की साज़िश चल रही हो, हमने भेदभाव की राजनीति को हमेशा ही नकारा है। मुझे अपने खासी होने का गर्व तो है लेकिन मैं यह भी जानती हूँ कि मैं एक धर्मनिरपेक्ष देश की नागरिक हूँ। सबसे पहले एक इंसान। आप हमारे कामों को देखेंगे तो पाएंगे कि हमने हमेशा सभी नागरिकों के अधिकारों की बात की है, चाहे उनका वर्ग या समुदाय  कुछ भी हो। मैं एक ऐसे समाज में विश्वास करती हूँ जो बहुलतावाद, धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करता हो। हमने समाज में हिंसा और अपराधीकरण के मुद्दों को लेकर निडरता के साथ संघर्ष किया है। चाहे मेघालय में AFSPA लगाने का मसला हो, किसी समुदाय के लोगों पर हमले की बात हो,  यूरेनियम खनन की परियोजना हो, स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर पर सांप्रदायिक हिंसा का सवाल हो  या माफिया द्वारा किए जाने वाले अवैध कोयला खनन का मामला हो।

न्याय, सत्य और तर्कशील चेतना जैसे संवैधानिक मूल्य हमारे संघर्षों की प्रेरणा हैं। सच्चाई रूपी ढाल और तलवार से ही नागरिक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण की लड़ाई लड़ सकते हैं। नागरिक के नाते हमारा फ़र्ज़ है कि हम सच का साथ दें और हर तरह की अवैध ताक़त को चुनौती दें। 

मैं 19 – साउथ शिलौंग निर्वाचन क्षेत्र से 2023 विधायक चुनाव क्यों लड़ना चाहती हूँ ?

मेघालय अब 50 साल पुराना राज्य हो चुका है। हम विकास के मापदंडों पर पड़ताल करें तो पाते हैं कि मेघालय की स्थिति भारत में सबसे बदतर है। भ्रष्टाचार में सबसे ऊपर, विकास में सबसे नीचे। शासन-तंत्र पर अपराधियों, भ्रष्ट राजनेताओं और अफ़सरों के बढ़ते क़ब्ज़े के कारण राज्य में गरीबी, भूमिहीनता, ख़राब शिक्षा प्रणाली, लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, बेरोज़गारी, सामाजिक-लैंगिक असमानता, गुंडागर्दी, ड्रग्स, बेरोजगारी, पर्यावरण संकट आदि समस्याओं का बोलबाला है। राज्य में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और समुचित विकास का अभाव झेल रहे हैं।

मुझे अक़्सर कोफ़्त होती है कि मेघालय के इस संकट पर हमारे एमएलए और दूसरे जनप्रतिनिधि कुछ बोलते-करते क्यों नहीं है। ऐसा लगता है राज्य की राजनीति को आपराधिक भ्रष्ट हितों को साधने वाला कोई नैक्सस संचालित कर रहा हो जो राजनीतिक पार्टियों के बीच सत्ता के हस्तांतरण का केवल भ्रम पैदा करता हो पर असली ताक़त उसी के पास बनी रहती हो। मानो, जनता के पास विकल्प के नाम पर भ्रष्ट और बेहद भ्रष्ट के बीच चुनाव करने के अलावा कुछ न हो।  

We have to challenge this.

हमारा यह राजनीतिक तबक़ा अपने लिए अवैध धन इकट्ठा करने और सत्ता का दुरुपयोग करने में ज़रूर माहिर है। ये लोग सोचते हैं कि नागरिकों को कभी-कभी कुछ ‘दान’ करके खरीदा जा सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विधायक कभी-कभार मदद के लिए हाथ बढ़ाकर हम पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं। यह हमारा ही पैसा है जिसे वे बाँटते हैं और यह तय करना हमारा अधिकार है कि हमारा पैसा कैसे खर्च किया जाना है। उस खर्च का नियमित हिसाब देना विधायक का कर्तव्य है।  लेकिन, आज चुनावी राजनीति अमीरों, अपराधियों, बिज़नेसमैनों, अमीर सरकारी अफ़सरों, कोयला कारोबारियों या राजनेताओं के परिवारों के लिए खेल का मैदान बनता जा रहा है। इनके लिए एमएलए, एमपी बनना केवल अपने और अपने परिवार के स्वार्थ के बारे में सोचना है। आजकल नेता होने का मतलब लोगों को डरा-धमका कर चुप रखना, भेदभाव करना, सत्ता के लिए दल-बदल करना और दोमुँहेपन घमंड और झूठ में डूबे रहना होना हो गया है। 

अगर हम अपने और अपने समाज के भविष्य के लिए चिंतित हैं तो समय आ गया है कि हम साउथ शिलौंग से इस तरह की राजनीति को ख़ारिज करने की शुरुआत करें।

मैं एक माँ हूँ और मैं हमेशा अपने बच्चों को यह कहती हूँ कि वे ईमानदार बनें, प्रेम और सहिष्णुता की बात करें, गुंडागर्दी, बेईमानी और शैतानी से दूर रहें। मुझे विश्वास है कि आप भी अपने बच्चों को यही कहते होंगे। लेकिन ऐसा क्यों है कि जो बातें हम अपने बच्चों को ग़लत बताते हैं, अपने नेताओं को वे सब करने देते हैं?  

हमें ग़लत को ग़लत कहना होगा। झूठ को झूठ। नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हम सच्चाई के हित में सत्ता पर सवाल उठाएं, क्योंकि नेता लोग तेज़ी से सत्ता पर एकाधिकार कर रहे हैं और झूठ और भ्रष्टाचार का साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। और अगर यह सब जारी रहा तो लोकतंत्र तो मर ही जाएगा और हमारा भविष्य भी अंधकारमय  हो जाएगा। 

साउथ शिलौंग मेघालय का एक प्रमुख शहरी निर्वाचन क्षेत्र है जिसका इतिहास गौरवपूर्ण रहा है लेकिन कुछ सालों से साउथ शिलौंग का नाम कुछ अजीब ढंग से लिया जाता है। मैं चाहती हूँ की साउथ शिलौंग की प्रतिष्ठा एक बार फिर बहाल हो। हमें एक ऐसा साउथ शिलौंग बनाना  है जहाँ विकास सबके के लिए हो, जहाँ भ्रष्टाचार, हिंसा और भाई-भतीजावाद का नामोनिशान ना हो। जहाँ एमएलए  और जनता के बीच का सम्बंध आदर और प्रेम पर आधारित हो, डर पर नहीं। साउथ शिलौंग हर इंसान के रहने के लिए एक सुरक्षित और सुखद स्थान हो, जहां हर किसी की बात सुनी जाए चाहे वह किसी भी समुदाय से हो, चाहे वो गरीब हो या धनी, महिला हो या पुरुष। 

तो हम यह लड़ाई कैसे जीतेंगे?

परिवर्तन के लिए इस आंदोलन को शुरू करने का समय आ गया है। मैं इसे एक आंदोलन कहती हूँ क्योंकि मैंने साउथ शिलौंग में लोगों की आपसी बातचीत में बदहाली और भ्रष्टाचार को लेकर हताशा और गुस्से की आवाज़ें सुनी हैं। ऐसी आवाज़ें जो चुनाव में विकल्प न होने की वजह से थक गई हैं। आवाजें जो नेताओं की घमंडी बातों से नफ़रत करती हैं। आवाज़ें जो न्याय, बराबरी और विकास चाहती हैं।

हम सब मिलकर इस चुनाव को अलग क़िस्म का ऐतिहासिक अभियान बना सकते हैं। लोग आमतौर पर यही कहते हैं कि चुनाव केवल वही लोग लड़ सकते हैं जिनके पास अकूत पैसा हो या बाहुबल हो। लेकिन हम KAM Meghalaya के कार्यकर्ता मानते हैं कि वोट खरीदने वाले भी वही हैं जो खुद बिकने के लिए उपलब्ध हैं और वोट पाने के लिए किए गए खर्च को वापस पाने के लिए फिर नया भ्रष्टाचार करने के लिए तैयार हैं । 

हमारा चुनावी अभियान जनता के चंदे और वॉलेंटियर भावना से चलाया जाएगा। यह एक रचनात्मक अभियान होगा जो विचारों को तरजीह देगा। एक ऐसा अभियान जो नागरिकों की चिंताओं को सुनता है और नागरिकों की आकांक्षाओं से सीखता है।

तो कृपया मुझे बताएं कि आप क्या सोचते हैं।  निर्वाचन क्षेत्र के बारे में आपके क्या विचार हैं? हमें क्या करना चाहिए? हम अपने अभियान को रचनात्मक, समावेशी और एक विजयी अभियान किस तरह बना सकते हैं? यह अकेले मेरा अभियान नहीं है,  यह आपका, हम सबका अभियान है क्योंकि आपकी आवाज़ मेरे लिए मायने रखती है। आइए हम बात करें और साउथ शिलौंग और अपने राज्य के लिए एक नई परिवर्तनकारी दृष्टि बनाने के लिए मिलकर काम करें।

और हाँ, यदि आपके मन में कोई सवाल, संदेह हो, यहाँ तक कि मैं जो कह रही हूँ आप उससे असहमत हों, तो कृपया मुझे 9863097754 पर मैसेज करें। हम मिल सकते हैं और बातचीत कर सकते हैं। आप हमारे हरिसभा लाबान अभियान ऑफिस में भी आ सकते हैं। 

आप www.kammeghalaya.in पर KAM के बारे में अधिक जान सकते हैं या हमें 6009754626 पर मैसेज कर सकते हैं।

प्यार और एकजुटता के अहसासों के साथ 

Khublei, नमस्कार, सलाम, 

एंजेला रंगद

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